ग्यारहवां अध्याय ( विश्वरूपदर्शनयोग ) इस अध्याय में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन करवाने का वर्णन किया गया है । अभी तक अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ अनेक तर्क- वितर्क कर रहा था । उसे श्रीकृष्ण के इस दिव्य शक्ति का अनुमान नहीं था । जब श्रीकृष्ण अपनी महिमा के विषय में

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [1-4]

श्रीभगवानुवाच   विराट स्वरूप का दर्शन पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः । नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च ।। 5 ।।     व्याख्या :- श्रीकृष्ण कहते हैं- हे पार्थ ! अब तुम मेरे सैकड़ो, हजारों अलग- अलग प्रकार के व अलग- अलग रंगों और आकृति वाले दिव्य रूपों को देखो ।       पश्यादित्यान्वसून्रुद्रानश्विनौ

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [5-9]

अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्‌ । अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्‌ ।। 10 ।। दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्‌ । सर्वाश्चर्यमयं देवमनन्तं विश्वतोमुखम्‌ ।। 11 ।।     व्याख्या :-  योगेश्वर श्रीकृष्ण का वह दिव्य स्वरूप अनेक मुख और नेत्रों वाला, अनेक अद्भुत दर्शनों वाला, अनेक दिव्य आभूषणों अथवा अलंकारों वाला, अनेक दिव्य अस्त्रों वाला-   दिव्य माला और वस्त्रों वाला, दिव्य सुगन्धित लेपों वाला,

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [10-14]

अर्जुन उवाच पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसङ्‍घान्‌ । ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थमृषींश्च सर्वानुरगांश्च दिव्यान्‌ ।। 15 ।।       व्याख्या :- हे देव ! मैं आपके इस दिव्य शरीर में सभी देवताओं को, सभी प्राणियों के विशिष्ट समूह को, कमल के आसन पर बैठे सभी देवताओं के स्वामी ब्रह्मा को, सभी ऋषियों को और सभी

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [15-19]

द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः । दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्‌ ।। 20 ।।       व्याख्या :-  हे महात्मन् ! पृथ्वी से लेकर आकाश तक चारों दिशाओं में आप ही व्याप्त ( फैले हुए ) हो । आपके इस अलौकिक और उग्र रूप को देखकर तीनों लोक डर से व्यथित ( अशान्त

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [20-23]

नभःस्पृशं दीप्तमनेकवर्णंव्यात्ताननं दीप्तविशालनेत्रम्‌ । दृष्टवा हि त्वां प्रव्यथितान्तरात्मा धृतिं न विन्दामि शमं च विष्णो ।। 24 ।।     व्याख्या :-  हे विष्णो ! ( कृष्ण ) आकाश को छूने वाले, प्रकाशवान, अनेक रंगों से रंगे, फैलाये हुए जबड़े और चमकीले नेत्रों वाले आपके विशाल स्वरूप को देखकर मेरा अंतःकरण भय से युक्त हो गया

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [24-27]

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति । तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ।। 28 ।।       व्याख्या :-  जैसे अनेक बड़ी- बड़ी नदियों के प्रवाह बिना विलम्ब किये शीघ्रता से समुद्र में प्रवेश कर जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य लोक के ये वीर योद्धा आपके प्रज्वलित मुखों में शीघ्रता से प्रवेश कर रहे हैं

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Bhagwad Geeta Ch. 11 [28-31]