यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।
तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ।। 28 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  जैसे अनेक बड़ी- बड़ी नदियों के प्रवाह बिना विलम्ब किये शीघ्रता से समुद्र में प्रवेश कर जाते हैं, ठीक उसी प्रकार मनुष्य लोक के ये वीर योद्धा आपके प्रज्वलित मुखों में शीघ्रता से प्रवेश कर रहे हैं ।

 

 

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतंगाविशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः ।
तथैव नाशाय विशन्ति लोकास्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः ।। 29 ।।


व्याख्या :-  जैसे पतंगे ( एक प्रकार का कीट ) अपने आप को नष्ट करने के लिए तीव्र अग्नि को देखकर उसमें बड़ी तेजी के साथ प्रवेश करते हैं, ठीक उसी प्रकार अपने आप को नष्ट करने के लिए यह लोग आपके विकराल जबड़ों में तेजी के साथ प्रवेश कर रहे हैं ।

 

 

 

लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ताल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः ।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रंभासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो ।। 30 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  हे विष्णो ! आप अग्नि के समान प्रज्वलित अपने अनेक मुखों से काल का ग्रास बने लोगों को जीभ द्वारा ऐसे चाट रहे हो जैसे कि वह आपका स्वादिष्ट भोजन हो, और आपका उग्र प्रकाश अपने तेज स्वरूप से पूरे विश्व को तपा रहा है ।

 

 

आख्याहि मे को भवानुग्ररूपोनमोऽस्तु ते देववर प्रसीद ।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यंन हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्‌ ।। 31 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे देवश्रेष्ठ ! आप मुझे बताइये कि उग्र रूप धारण करने वाले आप कौन हैं ? मैं आपको नमस्कार करता हूँ, कृपया आप प्रसन्न हो जाइये । मैं आपकी प्रवृति को नहीं जान पाया हूँ, इसलिए हे आदिपुरुष ! मैं  जानना चाहता हूँ कि आप कौन हैं ?

Related Posts

October 5, 2019

श्रीभगवानुवाच सुदुर्दर्शमिदं रूपं दृष्टवानसि यन्मम । देवा अप्यस्य रूपस्य नित्यं दर्शनकाङ्‍क्षिणः ।। 52 ।। ...

Read More

October 5, 2019

मा ते व्यथा मा च विमूढभावोदृष्ट्वा रूपं घोरमीदृङ्‍ममेदम्‌ । व्यतेपभीः प्रीतमनाः पुनस्त्वंतदेव मे रूपमिदं ...

Read More

October 5, 2019

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्ट्वा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे । तदेव मे दर्शय देवरूपंप्रसीद देवेश ...

Read More

October 5, 2019

अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से क्षमा याचना   सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं हे कृष्ण हे ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

  1. Thank you very much sir, I am grateful to you that you met me as Guruji…Very simple language with accurate information full of articles.

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}