सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्‌ ।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्‌ ।। 7 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! कल्प ( सृष्टि के प्रलयकाल ) के समय यह सारा जगत् नष्ट होकर, मुझमें ही विलीन हो जाते हैं अर्थात् यह सभी मुझमें ही आ मिलते हैं और कल्प के आदि ( सृष्टि के आदि अथवा ब्रह्मा के दिन ) में मैं पुनः इन सबका निर्माण करता हूँ ।

 

 

 

विशेष :-  यहाँ पर कल्प के आदि और अन्त की बात कही गई है । कल्प का अर्थ है सृष्टि रचना का आरम्भ होना, इसे ब्रह्मा का दिन भी कहते हैं और कल्प का अंत का अर्थ है सृष्टि का प्रलयकाल, इसे सृष्टि का अन्त भी कहते हैं । इस प्रकार इस सृष्टि की रचना व अन्त सब कुछ ईश्वर के ही अधीन है, जो भी कुछ व्यक्त पदार्थ हैं, वह सभी उस अव्यक्त ईश्वर की ही देन हैं । ईश्वर ही इस सृष्टि का स्वामी है ।

 

 

 

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्‌ ।। 8 ।।

 

 

व्याख्या :-  मैं अपनी शक्ति का सहारा लेकर इस जगत् की बार- बार उत्पत्ति करता रहता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अपने कर्मों के बन्धन द्वारा बार- बार उत्पन्न होने पर विवश है ।

 

 

 

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ।। 9 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे धनञ्जय ! मैं इस सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति और अन्त को बार- बार इसीलिए कर पाता हूँ, क्योंकि मैं इन कर्मों में अनासक्त भाव रखते हुए कभी भी इनमें लिप्त नहीं होता हूँ । इसलिए मैं कभी भी इन कर्म बन्धनों में नहीं बन्धता हूँ ।

 

 

 

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरं ।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ।। 10 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! मेरे स्वामित्व अथवा मुझसे प्रेरित होकर ही यह प्रकृति  चर व अचर ( सजीव – निर्जीव ) से परिपूर्ण जगत् का निर्माण करती है और मेरे स्वामित्व के कारण ही यह सम्पूर्ण जगत् परिवर्तनशील अथवा गतिशील है ।

Related Posts

September 20, 2019

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः । ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ...

Read More

September 20, 2019

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ।। 25 ।। ...

Read More

September 20, 2019

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते । ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌ ।। 20 ...

Read More

September 20, 2019

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते । एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ।। 15 ।।     ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}