मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः ।। 4 ।।

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌ ।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ।। 5 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  यह जो दिखाई देने वाला सम्पूर्ण जगत् है, मैंने ही इसका निर्माण किया है । इस जगत् में व्याप्त सभी प्राणी मुझमें ही स्थित हैं, लेकिन मैं उनमें स्थित नहीं हूँ अर्थात् वो मुझमें हैं, मैं उनमें नहीं ।

 

यह मेरी योगशक्ति का ही परिणाम है कि सभी प्राणी मुझमें स्थित हैं और नहीं भी । इस प्रकार सभी प्राणियों की उत्पत्ति करके उनको अपने भीतर धारण करने वाला होने पर भी मैं उन प्राणियों में स्थित नहीं हूँ अर्थात् मैं सभी प्राणियों को उत्पन्न करने वाला व उनको पोषित करने वाला होने पर भी मैं उनमें स्थित नहीं हूँ ।

 

 

 

विशेष :-  इन दोनों ही श्लोकों में अपनी योगशक्ति का परिचय देते हुए कहा है कि यह सम्पूर्ण विश्व मेरे द्वारा ही बनाया गया है, मैं ही सभी प्राणियों को उत्पन्न व पोषित करने वाला हूँ, सभी प्राणी मुझमें स्थित हैं पर मैं उनमें नहीं हूँ ।

 

 

 

यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्‌ ।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ।। 6 ।।

 

 

व्याख्या :-  जिस प्रकार चारों ओर बहने वाली तेज हवा सदा आकाश के अधीन अथवा नियंत्रण में ही रहती है, ठीक वैसे ही सभी प्राणी सदा मुझमें ही स्थित रहते हैं अर्थात् मैं सभी प्राणियों को अपने अन्दर स्थित करके उनको धारण किये हुए हूँ ।

 

 

 

विशेष :-  यहाँ पर तेज वायु के उदाहरण से इस श्लोक को समझने में सभी को सरलता रहेगी । जिस प्रकार वायु ( हवा ) कितनी भी तेज गति से बहती रहे, लेकिन वह रहेगी सदा आकाश के अन्दर ही । ठीक उसी प्रकार सभी प्राणी कहीं पर भी रहें, कुछ भी करें, लेकिन वह रहेंगे सदा ईश्वर के ही अधीन ।

Related Posts

September 20, 2019

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः । ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ...

Read More

September 20, 2019

यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति पितृव्रताः । भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्‌ ।। 25 ।। ...

Read More

September 20, 2019

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापायज्ञैरिष्ट्‍वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते । ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोकमश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्‌ ।। 20 ...

Read More

September 20, 2019

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ते यजन्तो मामुपासते । एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ।। 15 ।।     ...

Read More
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked

{"email":"Email address invalid","url":"Website address invalid","required":"Required field missing"}