एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।। 7 ।।

 

 

व्याख्या :-  जो व्यक्ति मेरे इस विभूतियोग को यथार्थ रूप से जान लेता है, वह निश्चल होकर योग से युक्त हो जाता है, इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह अथवा शक नहीं है ।

 

 

अहं सर्वस्य प्रभवो मत्तः सर्वं प्रवर्तते ।
इति मत्वा भजन्ते मां बुधा भावसमन्विताः ।। 8 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  मैं ही सम्पूर्ण जगत् का उत्पत्ति कर्ता हूँ और मुझसे ही जगत् की सभी क्रियाएँ संचालित होती हैं, ऐसा जानकर सभी ज्ञानी भक्त भक्तिभाव से युक्त होकर नित्य प्रति मेरा भजन करते हैं ।

 

 

मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्‌ ।
कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ।। 9 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  मुझमें अपना चित्त लगाकर अपने प्राणों का मुझमें समर्पण करने वाले ज्ञानी जन परस्पर एक- दूसरे से मेरी ही चर्चा करते हुए मुझमें ही सन्तुष्ट रहते हैं तथा निरन्तर मुझमें ही लीन हो जाते हैं ।

 

 

तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्‌ ।
ददामि बद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।। 10 ।।

 

  

व्याख्या :-  इस प्रकार जो भक्त निरन्तर मुझमें युक्त रहते हुए प्रेमपूर्वक मेरा भजन करते हैं, उनको मैं समबुद्धि प्रदान करता हूँ, जिससे ( समबुद्धि ) वे मुझे प्राप्त कर लेते हैं ।

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