श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः ।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ।। 19 ।।
व्याख्या :- भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! अब मैं तुम्हें अपनी प्रधान अथवा मुख्य विभूतियों का ही वर्णन करूँगा, क्योंकि मेरी विभूतियों के विस्तार का कोई अन्त नहीं है अर्थात् मेरी विभूतियाँ अनन्त हैं ।
अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः ।
अहमादिश्च मध्यं च भूतानामन्त एव च ।। 20 ।।
व्याख्या :- हे गुडाकेश ! ( निद्रा को अपने वश में करने वाले अर्जुन ) सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा मैं ही हूँ, प्राणियों की उत्पत्ति का कारण अर्थात् उनकी प्रारम्भिक मध्य और अन्तिम अवस्था सब मैं ही हूँ ।
विशेष :- इस श्लोक में वर्णित गुडाकेश शब्द का प्रयोग अर्जुन के लिए किया गया है, इस शब्द को अन्य श्लोकों में भी प्रयोग किया गया है । परीक्षा में इससे सम्बंधित प्रश्न पूछा जा सकता है-
- गुडाकेश शब्द का अर्थ क्या है और यह शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है ? जिसका उत्तर है – निद्रा को वश में करने वाले को गुडाकेश कहते हैं और गीता में यह शब्द अर्जुन के लिए प्रयोग किया गया है ।
आदित्यानामहं विष्णुर्ज्योतिषां रविरंशुमान् ।
मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।। 21 ।।
व्याख्या :- मैं बारह आदित्यों में विष्णु हूँ, ज्योतियों में मैं अंशुमान् सूर्य हूँ, मरुतों में मैं मरीचि हूँ और नक्षत्रों में मैं चन्द्रमा हूँ ।
विशेष :-
बारह आदित्य :- कश्यप ऋषि के बारह पुत्रों को ही आदित्य कहा जाता है, जिनके नाम निम्न हैं –
- धाता
- मित्र
- अर्यमा
- शक्र
- वरुण
- अंश
- भग
- विवस्वान
- पूषा
- सविता
- त्वष्टा व
विष्णु ।