शरीर में वात,पित्त व कफ का स्थान
तलपादनाभिदेशे वातस्थान मुदीरितम् ।
आनाभेर्हृदयं यावत् पित्तकोष्ठं प्रकीर्तितम् ।। 3 ।।
हृद्देशादूर्ध्वकायस्तु श्लेष्मधातुरिहोच्यते ।
इति त्रयाणां धातूनां स्वं स्वं स्थानमुदीरितम् ।। 4 ।।
भावार्थ :- पैर के तलवे से लेकर नाभि प्रदेश तक वायु ( वात ) का स्थान होता है । नाभि प्रदेश से लेकर हृदय प्रदेश तक पित्त का स्थान होता है और हृदय प्रदेश से लेकर ऊपर तक अर्थात् मस्तिष्क तक कफ धातु का स्थान होता है । इस प्रकार ऊपर वर्णित स्थितियों के अनुसार हमारे शरीर में धातुओं ( वात, पित्त व कफ ) के स्थान बताए गए हैं ।
विशेष :- हमारे शरीर में तीन धातु मुख्य रूप से होती हैं । जिनको क्रमशः वात, पित्त व कफ कहा गया है । जब तक हमारे शरीर में इन धातुओं की अवस्था सम रहती है तब तक हमें किसी प्रकार का कोई रोग नहीं होता है । लेकिन जैसे ही इनमें से कोई भी धातु असन्तुलित ( घटती या बढ़ती है ) होती है । वैसे ही हमें उसी धातु से सम्बंधित कोई न कोई रोग हो जाता है । अतः सभी रोगों से बचने के लिए इन तीनों ही धातुओं को सम अवस्था में रखना अति आवश्यक है ।
प्रमादाद्योगिना वायुरुन्मार्गेण प्रवर्तित: ।
तदा मार्गमना साद्य ग्रन्थी भूत्वावतिष्ठते ।। 5 ।।
तदा नानाविधा रोगा जायन्ते विध्नकारका: ।
तेषां चिकित्सां वक्ष्यामि यथोक्तां तन्त्र वेदिभि: ।। 6 ।।
भावार्थ :- योग साधक की लापरवाही से कई बार हमारी प्राणवायु गलत दिशा में प्रवाहित हो जाती है । जिससे उसे सही दिशा न मिलने की वजह से वह एक ही जगह पर अपना स्थान बना लेती है और गांठ का रूप धारण कर लेती है । तब उस वायु के गलत दिशा में जाने से वह शरीर में अनेक प्रकार के रोगों को उत्पन्न करती है । ऐसा आयुर्वेद व चिकित्सा पद्धति को जानने वाले आचार्यों का कहना है । अब आगे मैं उन्ही के अनुसार चिकित्सा पद्धति का उपदेश करूँगा ।
ॐ गुरुदेव*
आपका बहुत बहुत आभार।
धन्यवाद।
Prnam Aacharya ji Dhnyavad