द्यावापृथिव्योरिदमन्तरं हि व्याप्तं त्वयैकेन दिशश्च सर्वाः ।
दृष्ट्वाद्भुतं रूपमुग्रं तवेदंलोकत्रयं प्रव्यथितं महात्मन्‌ ।। 20 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  हे महात्मन् ! पृथ्वी से लेकर आकाश तक चारों दिशाओं में आप ही व्याप्त ( फैले हुए ) हो । आपके इस अलौकिक और उग्र रूप को देखकर तीनों लोक डर से व्यथित ( अशान्त ) हैं ।

 

 

अमी हि त्वां सुरसङ्‍घा विशन्ति केचिद्भीताः प्राञ्जलयो गृणन्ति ।
स्वस्तीत्युक्त्वा महर्षिसिद्धसङ्‍घा: स्तुवन्ति त्वां स्तुतिभिः पुष्कलाभिः ।। 21 ।।

 

 

व्याख्या :-  यह देखो ! कुछ देवता आपसे भयभीत होकर आपके सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं और कुछ देवताओं का समूह आपके अन्दर प्रवेश कर रहा है । महर्षि व सिद्धों के समूह विभिन्न स्तुति – प्रार्थना- उपासना मन्त्रों द्वारा आपका कल्याण हो, ऐसी प्रार्थना कर रहे हैं ।

 

 

 

रुद्रादित्या वसवो ये च साध्याविश्वेऽश्विनौ मरुतश्चोष्मपाश्च ।
गंधर्वयक्षासुरसिद्धसङ्‍घावीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे ।। 22 ।।

 

 

व्याख्या :-  सभी रुद्र, और आदित्य, वसु और साध्यगण, दोनों अश्वनी कुमार, मरुद्गण, पित्तर, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, और सभी सिद्धगण आपकी ओर आश्चर्यचकित होकर देख रहे हैं ।

 

 

 

रूपं महत्ते बहुवक्त्रनेत्रंमहाबाहो बहुबाहूरूपादम्‌ ।
बहूदरं बहुदंष्ट्राकरालंदृष्टवा लोकाः प्रव्यथितास्तथाहम्‌ ।। 23 ।।

 

 

व्याख्या :- हे महाबाहो ! आपके अनेक मुखों, नेत्रों, भुजाओं, जंघाओं, पैरों, उदरों ( पेट ), और बहुत सारे दाढ़ों ( जाड़ों ) वाले अत्यन्त विकराल स्वरूप को देखकर सभी व्याकुल हो गए हैं और मैं स्वयं भी व्याकुल हो गया हूँ ।

 

 

विशेष :-  ऊपर वर्णित दाढ़ों शब्द का अर्थ जाड़ होता है । यहाँ पर भगवान के जाड़ दिखाने को विकराल रूप वाला इसलिए कहा गया है क्योंकि जाड़ दिखाना विकराल प्रवृति होती है । जैसे- जंगल में जब शेर दहाड़ लगाता है तो शेर जब दहाड़ता है तो अपनी जाड़ों को दिखाता है, जिससे सभी जानवरों के दिल दहल जाते हैं । अतः जिस प्रकार शेर दहाड़ते हुए अपनी जाड़ों को दिखाकर अपने विकराल रूप का परिचय देता है, ठीक उसी प्रकार यहाँ पर भगवान भी अपनी जाड़ों को दिखाकर अपने विकराल रूप से सभी के हृदयों में भय व्याप्त कर रहे हैं ।

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