संस्कारसाक्षात्करणात्पूर्वजातिज्ञानम् ।। 18 ।।

 

शब्दार्थ :- संस्कार ( संस्कारों या अनुभवों का ) साक्षात् ( उनका प्रत्यक्षीकरण या साक्षात्कार ) करणात् ( में संयम करने से ) पूर्व ( पूर्व अर्थात पिछले ) जाति ( जाति अर्थात जन्म का ) ज्ञानम् ( ज्ञान हो जाता है )

 

सूत्रार्थ :- योगी द्वारा संयम के माध्मय से संस्कारों का साक्षात्कार या उनका प्रत्यक्षीकरण करने से वह पिछले जन्म की सभी जानकारी प्राप्त कर लेता है ।

 

व्याख्या :- इस सूत्र में बताया गया है कि योगी द्वारा संस्कारों में संयम करने से उसे पिछले जन्म से सम्बंधित सभी जानकारी हो जाती है ।

प्रत्येक मनुष्य अपने पूरे जीवन में जितने भी कार्यों का सम्पादन ( कार्यों को पूरा करना ) करता है । वह सभी ज्ञानेन्द्रियों, ( कान, त्वचा, आँख, जिव्हा व नासिका ) कर्मेन्द्रियों, ( पैर, हाथ, मुहँ, गुदा व लिंग ) मन व बुद्धि के द्वारा ही पूरे किए जाते हैं । इस प्रकार जो कार्य इन्द्रियों, मन व बुद्धि के द्वारा सम्पन्न होते हैं उन सभी के अनुभव ( संस्कार ) हमारे अन्तःकरण में समाहित हो जाते हैं । यहाँ पर पूर्व जन्म के संचित ( इकट्ठे हुए ) संस्कार मुख्य रूप से दो प्रकार के माने गए हैं । पहले वह जो स्मृति अर्थात याददाश्त और अविद्या आदि क्लेशों के कारण उत्पन्न होते हैं । और दूसरे वह जो धर्म अर्थात अच्छे कार्यों व अधर्म अर्थात जो बुरे कार्यों द्वारा उत्पन्न होते हैं ।

 

ये सभी संस्कार जीवों ( प्राणियों ) में अनेकों जन्मों से इकट्ठे होते रहते हैं । जो परिणाम अर्थात फल, चेष्टा अर्थात इच्छा, निरोध अर्थात रोकने आदि बिना दिखाई देने वाले धर्मों की तरह ही हैं ।

 

जब योगी इन सभी संस्कारों में संयम करता है तो उसे अपने पूर्व जन्म की सभी घटनाओं का स्मरण ( याद ) हो जाता है । जिससे योगी को अपने पिछले जन्म के बारे में सभी जानकारियाँ प्राप्त हो जाती हैं ।

 

 

ठीक इसी प्रकार यदि योगी किसी अन्य व्यक्ति के संस्कारों में संयम करता है, तो उसे उस व्यक्ति के पिछले जन्म का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है ।

 

जैसे उदाहरण स्वरूप आप सभी ने देखा होगा कि कई बच्चों को अपने पिछले जन्म की सभी बातें याद होती हैं कि कहाँ पर उनका जन्म हुआ था ? कौन उसके माता-पिता थे ? आदि – आदि । और वह सभी जानकारियाँ सत्य मिलती हैं । अतः इस प्रकार की पूर्व जन्म की घटनाओं की जानकारी भी बहुत से बच्चों को होती है ।

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  1. ॐ गुरुदेव*
    संस्कारों में संयम के फल का
    अति मनोहारी व्याख्या की है आपने।
    अस्तु आपका बहुत _बहुत धन्यवाद।

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