योगाङ्गानुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञान दीप्तिराविवेकख्याते: ।। 28 ।।

 

शब्दार्थ :- योगाङ्ग: ( योग के अंगों का ) अनुष्ठानात् ( पालन करने से ) अशुद्धि ( अशुद्धि अर्थात गन्दगी का ) क्षये, ( नाश होने से ) ज्ञानदीप्ति: ( ज्ञान के प्रकाश का उदय ) आविवेकख्याते: ( विवेकज्ञान की प्राप्ति तक होता है । )

 

सूत्रार्थ :- योग के अंगों का पालन करने से साधक के चित्त की अशुद्धि अर्थात गन्दगी का नाश होता है । और विवेकख्याति की प्राप्ति तक ज्ञान के प्रकाश का उदय होता है ।

 

 

व्याख्या :- इस सूत्र में आगे ( सूत्र संख्या 29 में ) कहे जाने वाले योग के आठ अंगों ( यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि ) का पालन करने से मिलने वाले फल की चर्चा की गई है । योग के आठ अंगों का पालन करने से योगी साधक के अविद्या आदि पंच क्लेशों का नाश होता है । जिससे चित्त के सभी विकार समाप्त हो जाने से चित्त निर्मल व एकाग्र अवस्था वाला बन जाता है ।

 

इस प्रकार चित्त के मलों की शुद्धि होने से योगी में विशुद्ध ज्ञान का संचार होता है । जो साधक में विवेकख्याति की अवस्था प्राप्त होने तक विद्यमान रहता है ।

 

जैसे ही साधक इन योग के आठ अंगों का अभ्यास पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ लम्बे समय तक, निरन्तरता के साथ करता है । वैसे ही साधक के सबसे पहले सभी पंच क्लेशों ( अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष व अभिनिवेश ) का नाश होता है । कलेशों का नाश होने पर साधक में शुद्ध सात्त्विक ज्ञान का उदय होता है । और वह शुद्ध सात्त्विक ज्ञान साधक में विवेकख्याति की अवस्था प्राप्त होने तक बना रहता है ।

 

अब अगले सूत्र से अष्टांग योग की  विस्तृत विवेचना शुरू हो रही है ।

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  1. प्रणम्य आचार्य श्री जी प्रणाम आपको योग दिवस की भी हार्दिक शुभकामनाएं जी । हम निरन्तर योग के 8 सूत्रों को जीवन मे त्री करन ओर तीन योग से पालन करे तभी विवेकख्याति की प्राप्ति शीघ्र ह्यो ।

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