आसन प्रारम्भ 

 स्वस्तिकासन

 जानूर्वोरन्तरे सम्यक्कृत्वा पादतले उभे ।

ऋजुकाय: समासीन: स्वस्तिकं तत् प्रचक्षते ।। 21 ।।

 

भावार्थ :- दोनों पैरों के तलवों ( पैर के सबसे नीचे का भाग ) को एक दूसरे पैर अर्थात बायें पैर के तलवे को दायीं पिण्डली व जांघ के बीच में और दायें पैर के तलवे को बायें पैर की पिण्डली व जंघा के बीच में स्थापित करके सीधा व तनाव रहित होकर बैठना स्वस्तिक आसन कहलाता है ।

 

 गोमुखासन

सव्ये दक्षिणगुल्फं तु पृष्ठपार्श्वे नियोजयेत् ।

दक्षिणेऽपि तथा सव्यं गोमुखं गोमुखाकृति: ।। 22 ।।

 

भावार्थ :- दायें पैर की एड़ी को पीछे अर्थात बायें नितम्ब के पास व बायें पैर की एड़ी को दायें नितम्ब के पास स्थापित करके दोनों घुटनों की आकृति गाय के मुहँ के समान बना लेना गोमुखासन कहलाता है । इसमें दोनों घुटने एक दूसरे के ऊपर आ जाते हैं ।

 

विशेष :- इस आसन को एक तरफ से करने के बाद दोनों पावों की स्थिति बदल कर इसे दूसरी तरफ से भी करना चाहिए । तभी यह आसन पूर्ण होता है । अन्यथा नहीं ।

             

 वीरासन

 एकं पादमथैकस्मिन् विन्यसेदूरुणि स्थिरम् ।

इतरस्मिंस्तथा चोरुं वीरासनमितीरितम् ।। 23 ।।

  

भावार्थ :- तथा इसी तरह एक पैर को उसकी विपरीत जंघा पर रखें व दूसरे पैर को पहले वाली जंघा के स्थापित करें । यह विधि वीरासन कहलाती है ।

 

 

कूर्मासन

 

 गुदं निरुध्य गुल्फाभ्यां व्युत्क्रमेण समाहित: ।

कूर्मासनं भवेदेतदिति योगविदो विदुः ।। 24 ।।

  

भावार्थ :- अपनी दोनों एड़ियों को विपरीत क्रम ( दोनों पैरों को एक दूसरे के ऊपर से अर्थात क्रॉस करते हुए ) में गुदा प्रदेश के नीचे रखते हुए गुदा प्रदेश को दबायें । इसमें बायीं एड़ी दायें नितम्ब के पास व बायीं एड़ी दायें नितम्ब के पास स्थित होगी । योग के विद्वान इस आसन को कूर्मासन कहते हैं ।

 

 कुक्कटासन

 पद्मासनं तु संस्थाप्य जानूर्वोरन्तरे करौ ।

निवेश्य भूमौ संस्थाप्य व्योमस्थं कुक्कटासनम् ।। 25 ।।

 

भावार्थ :- पद्मासन लगाकर ( बायें पैर को दायीं जंघा पर रखें । दायें पैर को बायीं जंघा पर रखना व कमर गर्दन को सीधा रखना पद्मासन कहलाता है ) दोनों पैरों की जंघा व पिण्डलियों के बीच से अपने दोनों हाथों को जमीन पर टिकायें और अपने शरीर को हाथों के सहारे भूमि से ऊपर की ओर अर्थात आसमान में उठाकर वहीं पर स्थिर कर देना कुक्कुटासन कहलाता है ।

 

उत्तानकूर्मासन

कुक्कुटासनबन्धस्थो दोर्भ्यां सम्बन्ध्य कन्धराम् ।

भवेत् कूर्मवदुत्तान:  एतदुत्तानकूर्मकम् ।। 26 ।।

 

भावार्थ :- अपने शरीर को कुक्कुटासन की ही स्थिति में रखते हुए दोनों हाथों द्वारा गर्दन को पकड़कर कछुए की तरह छाती को ऊपर की ओर करके चित लेट जाने को उत्तानकूर्मासन कहते हैं ।

 

धनुरासन

पादाङ्गुष्ठौ तु पाणिभ्यां गृहीत्वा श्रवणावधि ।

धनुराकर्षणं कुर्यात्  धनुरासनमुच्यते ।। 27 ।।

 

भावार्थ :- पहले भूमि ( योग मैट ) पर पेट के बल लेट जाएँ । फिर पैरों के दोनों अंगूठों को दोनों हाथों से पकड़कर धुनष की भाँति अपने दोनों कानों के पास खींच कर लाना धनुरासन कहलाता है ।

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  1. आसन केे चित्र (picture/posture) के साथ हो, तो
    समझने में आसानी होगी।
    धन्यवाद।

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