देशबन्धश्चितस्य धारणा ।। 1 ।।   शब्दार्थ :- चित्तस्य ( चित्त को ) देश ( किसी एक स्थान पर ) बन्ध: ( बाँधना अर्थात ठहराना या केन्द्रित करना ) धारणा ( धारणा होती है । )   सूत्रार्थ :- अपने चित्त को किसी भी एक स्थान पर बाँधना, लगाना, ठहराना, या केन्द्रित करना धारणा कहलाती

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Yoga Sutra 3 – 1

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् ।। 2 ।।   शब्दार्थ :- तत्र ( जहाँ पर अर्थात जिस स्थान पर धारणा का अभ्यास किया गया है उसी स्थान पर ) प्रत्यय ( ज्ञान या चित्त की वृत्ति की ) एकतानता ( एकतानता अर्थात एकरूपता बनी रहना ही ) ध्यानम् ( ध्यान है । )   सूत्रार्थ :- जहाँ

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Yoga Sutra 3 – 2

तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः ।। 3 ।।   शब्दार्थ :- तदेव ( तब वह अर्थात ध्यान ही ) अर्थमात्र ( केवल उस वस्तु के अर्थ या स्वरूप का ) निर्भासं ( आभास करवाने वाला ) स्वरूपशून्यम् ( अपने निजी स्वरूप से रहित हुआ ) इव ( जैसा ) समाधिः ( समाधि होती है । )  

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Yoga Sutra 3 – 3

त्रयमेकत्र संयम: ।। 4 ।।   शब्दार्थ :- त्रयम् ( तीनों अर्थात धारणा, ध्यान व समाधि का ) एकत्र (  एक ही विषय में प्रयोग होना ) संयम: ( संयम होता है । )   सूत्रार्थ :- धारणा, ध्यान व समाधि का किसी एक ही विषय में प्रयोग करना संयम कहलाता है ।    व्याख्या

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Yoga Sutra 3 – 4

तज्जयात् प्रज्ञालोक: ।। 5 ।।   शब्दार्थ :- तत् ( उस अर्थात संयम पे ) ज्यात् ( जय अर्थात विजय प्राप्त करने पर ) प्रज्ञा ( बुद्धि का ) आलोक:, ( प्रकाश या विकास होता है । )   सूत्रार्थ :- संयम पर विजय अर्थात संयम में सिद्धि प्राप्त होने पर योगी की बुद्धि प्रकाशित

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Yoga Sutra 3 – 5

तस्य भूमिषु विनियोगः ।। 6 ।।   शब्दार्थ :- तस्य ( उसका अर्थात संयम का ) भूमिषु ( योग की भूमियों या अवस्थाओं में ) विनियोग: ( उपयोग या प्रयोग करना चाहिए । )    सूत्रार्थ :- संयम का प्रयोग योग की अलग- अलग भूमियों या अवस्थाओं में करना चाहिए । अर्थात योगी साधक को

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Yoga Sutra 3 – 6

त्रयमन्तरङ्गं पूर्वेभ्य: ।। 7 ।।   शब्दार्थ :- पूर्वेभ्य: ( पूर्व अर्थात पहले कहे गए की अपेक्षा ) त्रयम् ( ये तीन अर्थात धारणा, ध्यान व समाधि ) अन्तरङ्गंम् ( अन्तरङ्ग अर्थात ज्यादा निकट हैं । )   सूत्रार्थ :- पहले कहे गए ( यम, नियम, आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार की अपेक्षा ) यह तीन

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Yoga Sutra 3 – 7