शुक्ल कृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते । एकया यात्यनावृत्ति मन्ययावर्तते पुनः ।। 26 ।।     व्याख्या :-   मृत्यु के बाद परलोक जाने हेतु शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को नित्य व स्थायी मार्ग माना गया है । इनमें से एक मार्ग ( शुक्ल पक्ष ) में गया हुआ योगी अर्थात् शुक्ल पक्ष में

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [26-28]

पुनर्जन्म अथवा बन्धन का काल – कृष्ण पक्ष   धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण षण्मासा दक्षिणायनम्‌ । तत्र चान्द्रमसं ज्योतिर्योगी प्राप्य निवर्तते ।। 25 ।।     व्याख्या :-  धुआँ, रात्रि ( अँधेरा ), कृष्ण पक्ष और दक्षिणायन के छः महीनों के समय मरने वाले योगी चन्द्रमा के प्रकाश को प्राप्त करके अर्थात् अपने शुभ कर्मों के

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [25]

पुरुषः स परः पार्थ भक्त्या लभ्यस्त्वनन्यया । यस्यान्तः स्थानि भूतानि येन सर्वमिदं ततम्‌ ।। 22 ।।       विशेष :-  हे पार्थ ! जिसमें सभी प्राणी और यह सम्पूर्ण जगत् समाया हुआ है, अर्थात् जो सभी प्राणियों और जगत् का आधार है, उस परमपुरुष परमात्मा को केवल अनन्य भक्ति भाव से ही प्राप्त किया

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [22-24]

अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे । रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।। 18 ।।     विशेष :-  जब ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ होता है, तब यह सभी व्यक्त ( दिखाई देने वाले ) पदार्थ उस अव्यक्त ( प्रकृति ) से ही उत्पन्न होते हैं और रात्रि के समय पहले की भाँति सभी व्यक्त पदार्थ जो अव्यक्त से उत्पन्न

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [18-21]

मोक्ष प्राप्ति   मामुपेत्य पुनर्जन्म दुःखालयमशाश्वतम्‌ । नाप्नुवन्ति महात्मानः संसिद्धिं परमां गताः ।। 15 ।।     व्याख्या :-  इस प्रकार परम सिद्धि की प्राप्ति करने वाले महात्मा मुझे प्राप्त करके, दुःखों के घर व अक्षणभंगुर अर्थात् ( जिसका अन्त निश्चित है ) ऐसे पुनर्जन्म से सदा के लिए मुक्त होकर, परमगति ( मोक्ष )

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [15-17]

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः । यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये ।। 11 ।।     व्याख्या :-  वेद को जानने वाले विद्वान जिसे अक्षर अर्थात् अविनाशी कहते हैं, जिनके राग व द्वेष नामक क्लेश समाप्त हो गए हैं, ऐसे सन्यासी ही जिसे प्राप्त करते हैं और साधक लोग जिसको प्राप्त करने

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [11-14]

तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युद्ध च । मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्‌ ।। 7 ।।     व्याख्या :-  इसलिए हे अर्जुन ! तुम सभी कालों में सदा मेरा ही स्मरण करते हुए युद्ध करो । इस प्रकार तुम अपने मन व बुद्धि को मुझमें अर्पित करके निश्चित रूप से मुझे ही प्राप्त करोगे, इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह

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Bhagwad Geeta Ch. 8 [7-10]