दूसरा अध्याय ( सांख्ययोग ) गीता के इस अध्याय में ही योगी श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का अनमोल ज्ञान देना शुरू करते हैं । पहले अध्याय में आपने देखा कि किस प्रकार अर्जुन मोह में फंसकर भयंकर अवसाद में डूबा हुआ था । जैसे ही श्रीकृष्ण ने अर्जुन की यह अवस्था देखी वैसे ही उन्होंने

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [1-5]

न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो- यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः । यानेव हत्वा न जिजीविषाम- स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥ 6 ।। कार्पण्यदोषोपहतस्वभावः पृच्छामि त्वां धर्मसम्मूढचेताः । यच्छ्रेयः स्यान्निश्चितं ब्रूहि तन्मे शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्‌ ॥ 7 ।। न हि प्रपश्यामि ममापनुद्या- द्यच्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्‌ । अवाप्य भूमावसपत्रमृद्धं- राज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम्‌ ॥ 8 ।।   व्याख्या :-

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [6-12]

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥ 13 ।।   व्याख्या :-  जिस प्रकार इस शरीर को प्राप्त करने वाला प्रत्येक मनुष्य के जीवन में बचपन, युवावस्था व बुढ़ापे आदि सभी अवस्थाएँ आती हैं । ठीक उसी प्रकार मृत्यु के बाद भी इस आत्मा को दूसरा शरीर प्राप्त हो जाता है

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [13-16]

अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम्‌ । विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥ 17 ।।   व्याख्या :-  जिससे यह सबकुछ निर्मित है अर्थात् जिसकी उपस्थिति से इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ है । वह अविनाशी है और उस अविनाशी का किसी द्वारा भी नाश नहीं किया जा सकता ।     अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [17-20]

वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्‌ । कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्‌ ॥ 21 ।।   व्याख्या :-  हे पार्थ ! जिस भी व्यक्ति ने आत्मा के इस स्वरूप को जान लिया है कि यह अविनाशी ( नाश रहित ), नित्य ( सदा रहने वाला ), अजन्मा ( जन्म रहित ) और अव्यय (

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [21-22]

आत्मा की अमरता / विशेषताएँ   नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः । न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ॥ 23 ।। अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च । नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ 24 ।। अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते । तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥ 25 ॥   व्याख्या :-  इस आत्मा को कोई भी शस्त्र काट नहीं सकता, आग इसे

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [23-27]

अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥ 28 ।।     व्याख्या :-  हे भारत ! ( भरतवंशी ) संसार के सभी प्राणी अपने जन्म से पहले अव्यक्त अर्थात् अदृश्य रहते हैं । जन्म के बाद वह व्यक्त अर्थात् दिखाई देते हैं और मरने के बाद वह फिर से अव्यक्त अर्थात् दिखाई

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Bhagwad Geeta Ch. 2 [28-30]