चौदहवां अध्याय ( गुणत्रय विभागयोग ) इस चौदहवें अध्याय में मुख्य रूप से गुणों के विभागों ( सत्त्वगुण, रजोगुण व तमोगुण ) की चर्चा की गई है । इसमें कुल सत्ताईस ( 27 ) श्लोक कहे गए हैं । गुणों के विषय में कहा गया है कि पूरी प्रकृति इन तीन गुणों से ही निर्मित

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [1-3]

बीज स्थापना ( गर्भ स्थापना )   सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः । तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ।। 4 ।।     व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! सभी योनियों में जितने भी मूर्त रूप ( शरीरधारी ) प्राणी जन्म लेते हैं, उनकी ब्रह्म रूप प्रकृति योनि है और मैं उस योनि में बीज की

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [4-6]

रजोगुण का प्रभाव   रजो रागात्मकं विद्धि तृष्णासङ्‍गसमुद्भवम्‌ । तन्निबध्नाति कौन्तेय कर्मसङ्‍गेन देहिनम्‌ ।। 7 ।।     व्याख्या :-  हे कौन्तेय ! यह रजोगुण रागात्मक होता है, जो इच्छाओं के प्रति आकर्षण अथवा आसक्ति से उत्पन्न होता है । यह जीवात्मा को कर्मफल के प्रति आसक्त ( लगाव ) करके शरीर के साथ बाँधता

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [7-9]

एक गुण की प्रधानता   रजस्तमश्चाभिभूय सत्त्वं भवति भारत । रजः सत्त्वं तमश्चैव तमः सत्त्वं रजस्तथा ।। 10 ।।       व्याख्या :-  हे भारत ! रजोगुण और तमोगुण को दबाकर सत्त्वगुण प्रधान हो जाता है, सत्त्वगुण और तमोगुण को दबाकर रजोगुण प्रधान हो जाता है तथा सत्त्वगुण और रजोगुण को दबाकर तमोगुण प्रधान

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [10-12]

तमोगुण का शरीर पर प्रभाव   अप्रकाशोऽप्रवृत्तिश्च प्रमादो मोह एव च । तमस्येतानि जायन्ते विवृद्धे कुरुनन्दन ।। 13 ।।       व्याख्या :-  हे कुरुनन्दन अर्जुन ! शरीर में तमोगुण की वृद्धि होने पर व्यक्ति में अज्ञान का अन्धकार, कर्तव्य कर्मों में अरुचि, प्रमाद ( लापरवाही ), और मोह बढ़ता है ।    

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [13-15]

कर्मों के फल   कर्मणः सुकृतस्याहुः सात्त्विकं निर्मलं फलम्‌ । रजसस्तु फलं दुःखमज्ञानं तमसः फलम्‌ ।। 16 ।।     व्याख्या :- सात्त्विक अथवा शुभ कर्मों का फल सात्त्विक और पवित्र, राजसिक कर्मों का फल दुःख और तामसिक कर्मों का फल अज्ञान होता है ।       विशेष :- सात्त्विक व पवित्र फल किन

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [16-19]

गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान्‌ । जन्ममृत्युजरादुःखैर्विमुक्तोऽमृतमश्नुते ।। 20 ।।     व्याख्या :-  जो पुरुष शरीर में उत्पन्न तीनों गुणों से रहित होकर अथवा इन तीनों गुणों का आश्रय लिए बिना ही व्यवहार करता है, वह जन्म, मृत्यु और बुढ़ापा आदि दुःखों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ।       विशेष

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Bhagwad Geeta Ch. 14 [20-25]