दसवां अध्याय ( विभूतियोग ) जिस प्रकार अध्याय के नाम से ही विदित होता है कि इसमें भगवान की विभूतियों का वर्णन किया गया है । इसमें कुल बयालीस ( 42 ) श्लोक कहे गए हैं । जब अर्जुन प्रश्न करता है कि हे जनार्दन ! आप उन सभी विभूतियों का विस्तार से वर्णन करो

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [1-3]

बुद्धिर्ज्ञानमसम्मोहः क्षमा सत्यं दमः शमः । सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च ।। 4 ।। अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः । भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः ।। 5 ।।       व्याख्या :-   प्राणियों में बुद्धि, ज्ञान, विरक्ति, क्षमा, सत्य, इन्द्रिय निग्रह, मनो निग्रह, सुख- दुःख, प्रकट होना व नष्ट होना, भय, निडरता

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [4-6]

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः । सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।। 7 ।।     व्याख्या :-  जो व्यक्ति मेरे इस विभूतियोग को यथार्थ रूप से जान लेता है, वह निश्चल होकर योग से युक्त हो जाता है, इसमें किसी प्रकार का कोई सन्देह अथवा शक नहीं है ।    

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [7-10]

तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः । नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता ।। 11 ।।     व्याख्या :-  मैं उन योगयुक्त ज्ञानी भक्तों पर विशेष कृपा करने के उद्देश्य से उनके अंतःकरण में प्रवेश करके ज्ञान की रोशनी द्वारा उनके अन्दर अज्ञान से उत्पन्न अंधकार को नष्ट कर देता हूँ ।       अर्जुन उवाच परं ब्रह्म परं धाम

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [11-14]

स्वयमेवात्मनात्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम । भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते ।। 15 ।।       व्याख्या :-  हे सभी प्राणियों के उत्पत्तिकर्ता ! हे प्राणियों के स्वामी ! हे देवों के देव ! हे जगत् के स्वामी ! हे पुरुषोत्तम ! आप स्वयं ही स्वयं को जानते हो, कोई अन्य आपको नहीं जानता ।  

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [15-18]

श्रीभगवानुवाच हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः । प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ।। 19 ।।     व्याख्या :-   भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – हे कुरुश्रेष्ठ अर्जुन ! अब मैं तुम्हें अपनी प्रधान अथवा मुख्य विभूतियों का ही वर्णन करूँगा, क्योंकि मेरी विभूतियों के विस्तार का कोई अन्त नहीं है अर्थात् मेरी विभूतियाँ अनन्त हैं

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [19-21]

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः । इंद्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ।। 22 ।।       व्याख्या :-   वेदों में मैं सामवेद हूँ, देवताओं में मैं इन्द्र हूँ, इन्द्रियों में मैं मन हूँ और प्राणियों में मैं चेतना हूँ ।     विशेष :- भगवान ने स्वयं को वेदों में कौनसा वेद कहा है ? उत्तर

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Bhagwad Geeta Ch. 10 [22-23]