पहला अध्याय ( अर्जुन विषादयोग ) इस पहले अध्याय में कुरुक्षेत्र के मैदान में एक- दूसरे के सामने खड़ी हुई पाण्डवों व कौरवों की सेना का दृश्य दिखाई देता है । यहाँ से गीता शुरू होती है । इसी अध्याय में अर्जुन को अपने स्वजनों के प्रति मोह हो जाता है । जिससे अर्जुन को

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [1-6]

अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम । नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥ 7 ।। भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः । अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ 8 ।। अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥ 9 ।। अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्‌ । पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्‌ ॥ 10 ।। अयनेषु च

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [7-13]

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतु: ।। 14 ।।      व्याख्या :-  इसके बाद सफेद घोड़ों से जुते हुए ( सुज्जित ) रथ में बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी कौरवों की ओर से बजाये गए शंखों का उत्तर देते हुए ( युद्ध हेतु ) अपने- अपने दिव्य शंख

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [14-16]

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ 17 ।। द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌ ॥ 18 ।।     व्याख्या :-  इसके बाद श्रेष्ठ धनुर्धर काशिराज, महारथी शिखण्डी, सेनापति धृष्टद्युम्न, राजा विराट, कभी भी पराजित न होने वाले सात्यिक, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों व सुभद्रा के

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [17-21]

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ । कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ 22 ।। योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ।।   व्याख्या :-  जिससे मैं यहाँ पर युद्ध की इच्छा से आये हुए योद्धाओं को अच्छी प्रकार से देख लूँ कि मुझे किन- किन योद्धाओं के साथ युद्ध करना है । इसके साथ ही

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [22-25]

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ । आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ 26 ।। श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि । तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ॥ 27 ।।   व्याख्या :-  तब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में युद्ध की इच्छा से इकठ्ठे हुए अपने चाचा- ताऊओं, दादा- परदादों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, बेटों, पौत्रों ( पोतों ), मित्रों, ससुरों व स्नेहियों को देखा

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [26-30]

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव । न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥ 31 ।।   व्याख्या :-  हे केशव ! मुझे यह सारे लक्षण विपरीत दिखाई दे रहे हैं और इस युद्ध में अपने ही सगे- संबंधियों को मारकर मुझे अपना कल्याण अथवा हित होता दिखाई नहीं दे रहा है ।     न काङ्‍क्षे

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [31-37]