अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम् । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥ 45 ।। यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः । धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥ 46 ।। व्याख्या :- यह तो बड़े ही आश्चर्य की बात है कि राज्य के सुख व लालच को पाने में हम अपने ही सगे – संबंधियों को मारने जैसा …
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- Category: Bhagwad Geeta – 1