अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्‌ । यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः ॥ 45 ।। यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः । धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत्‌ ॥ 46 ।।     व्याख्या :-  यह तो बड़े ही आश्चर्य की बात है कि राज्य के सुख व लालच को पाने में हम अपने ही सगे – संबंधियों को मारने जैसा

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [45-47]

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः । कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्‌ ॥ 38 ।। कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्‌ । कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥ 39 ।।   व्याख्या :-  यद्यपि लोभ के वशीभूत होकर उनकी ( कौरवों की ) की बुद्धि भ्रष्ट ( खराब )  हो चुकी है । जिसके कारण उन्हें मित्रद्रोह व कुल में नाश

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [38-44]

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव । न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे ॥ 31 ।।   व्याख्या :-  हे केशव ! मुझे यह सारे लक्षण विपरीत दिखाई दे रहे हैं और इस युद्ध में अपने ही सगे- संबंधियों को मारकर मुझे अपना कल्याण अथवा हित होता दिखाई नहीं दे रहा है ।     न काङ्‍क्षे

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [31-37]

तत्रापश्यत्स्थितान्‌ पार्थः पितृनथ पितामहान्‌ । आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा ॥ 26 ।। श्वशुरान्‌ सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि । तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्‌ बन्धूनवस्थितान्‌ ॥ 27 ।।   व्याख्या :-  तब अर्जुन ने दोनों सेनाओं में युद्ध की इच्छा से इकठ्ठे हुए अपने चाचा- ताऊओं, दादा- परदादों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, बेटों, पौत्रों ( पोतों ), मित्रों, ससुरों व स्नेहियों को देखा

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [26-30]

यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्‌ । कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥ 22 ।। योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः । धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेर्युद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥ 23 ।।   व्याख्या :-  जिससे मैं यहाँ पर युद्ध की इच्छा से आये हुए योद्धाओं को अच्छी प्रकार से देख लूँ कि मुझे किन- किन योद्धाओं के साथ युद्ध करना है । इसके साथ ही

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [22-25]

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः ॥ 17 ।। द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्‌ ॥ 18 ।।     व्याख्या :-  इसके बाद श्रेष्ठ धनुर्धर काशिराज, महारथी शिखण्डी, सेनापति धृष्टद्युम्न, राजा विराट, कभी भी पराजित न होने वाले सात्यिक, राजा द्रुपद, द्रौपदी के पाँचों पुत्रों व सुभद्रा के

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [17-21]

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ । माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शंखौ प्रदध्मतु: ।। 14 ।।      व्याख्या :-  इसके बाद सफेद घोड़ों से जुते हुए ( सुज्जित ) रथ में बैठे श्रीकृष्ण और अर्जुन ने भी कौरवों की ओर से बजाये गए शंखों का उत्तर देते हुए ( युद्ध हेतु ) अपने- अपने दिव्य शंख

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Bhagwad Geeta Ch. 1 [14-16]