प्राणायाम के तीन प्रमुख अंग   प्राणायामस्त्रिधा प्रोक्तो रेचपूरककुम्भकै: । सहित: केवलश्चेति कुम्भको द्विविधो मत: । यावत्  केवलसिद्धि: स्यात् सहितं तावदभ्यसेत् ।। 71 ।।   भावार्थ :- प्राणायाम के तीन मुख्य अंग होते हैं जिनसे प्राणायाम पूर्ण होता है । रेचक, ( श्वास को बाहर निकालना ) पूरक ( श्वास को अन्दर भरना ) व

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Hatha Pradipika Ch. 2 [71-78]

भ्रामरी प्राणायाम विधि व लाभ   वेगाद् घोषं पूरकं भृङ्गनादम् भृङ्गीनादं रेचकं मन्दमन्दम् । योगीन्द्राणामेवमभ्यासयोगात् चित्ते जाता काचिदानन्दलीला ।। 68 ।।   भावार्थ :- भ्रमर ( भवरें ) की तरह पूरी तेज गति से गुंजन ( आवाज ) करते हुए श्वास को अन्दर भरें । इसके बाद धीरे- धीरे भ्रमरी ( भंवरी ) की तरह

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Hatha Pradipika Ch. 2 [68-70]

भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ   वातपित्तश्लेष्महरं शरीराग्निविवर्धनम् ।। 65 ।।   भावार्थ :- भस्त्रिका प्राणायाम करने से साधक के सभी वात, पित्त व कफ से सम्बंधित सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और जठराग्नि प्रदीप्त ( मजबूत ) हो जाती है ।   कुण्डलीबोधकं क्षिप्रं पवनं सुखदं हितम् । ब्रह्मनाडीमुखेसंस्थकफाद्यर्गलनाशनम् ।। 66 ।।   भावार्थ

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Hatha Pradipika Ch. 2 [65-67]

भस्त्रिका प्राणायाम से पहले पद्मासन की स्थिति   ऊर्वोरूपरि संस्थाप्य शुभे पादतले उभे । पद्मासनं भवेदेतत् सर्वपापप्रणाशनम् ।। 59 ।।   भावार्थ :- अपने दोनों पैरों के तलवों को दोनों जंघाओं के ऊपर रखकर बैठें । यह सभी प्रकार के पाप कर्मों को नष्ट करने वाला पद्मासन कहलाता है ।   विशेष :- भस्त्रिका प्राणायाम

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Hatha Pradipika Ch. 2 [59-64]

सीत्कारी प्राणायाम विधि व लाभ   सीत्कां कुर्यात्ततथा वक्त्रे घ्राणेनैव विजृम्भिकाम् । एवमभ्यासयोगेन कामदेवो द्वितीयक: ।। 54 ।।   भावार्थ :- मुख से सीत्कार अर्थात सी-सी की ध्वनि करते हुए वायु को अन्दर भरें और रेचक अर्थात श्वास को बाहर हमेशा नासिका से ही निकालना चाहिए । इस प्रकार के योग का अभ्यास करने से

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Hatha Pradipika Ch. 2 [54-58]

उज्जायी प्राणायाम   मुखं संयम्य नाडीभ्यामाकृष्य पवनं शनै: । यथा लगति कण्ठात्तु हृदयावधि सस्वनम् ।। 51 ।।   भावार्थ :- मुख को बन्द करके इड़ा व पिंगला नाडियों ( दोनों नासिकाओं ) से वायु को धीरे- धीरे अन्दर भरें । जब वायु को अन्दर भरें तब गले से लेकर हृदय प्रदेश तक वायु के स्पर्श

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Hatha Pradipika Ch. 2 [51-53]

प्राण व अपान की साधना का फल   अपानमूर्ध्वमुत्थाप्य प्राणं कण्ठादधो नयेत् । योगी जराविमुक्त: सन् षोडशाब्दवया भवेत् ।। 47 ।।   भावार्थ :- अपान वायु ( नीचे की वायु ) को ऊपर उठाकर और प्राण वायु को कण्ठ प्रदेश से नीचे की ओर ले जाने की साधना करने से बूढ़ा व्यक्ति भी अपने बुढ़ापे

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Hatha Pradipika Ch. 2 [47-50]