युवा वृद्धोऽतिवृद्धो वा व्याधितो दुर्बलोऽपि वा । अभ्यासात्सिद्धिमाप्नोति सर्वयोगेष्वतन्द्रित: ।। 66 ।।   भावार्थ :- युवा अर्थात जवान, बूढ़ा या बहुत बूढ़ा, रोगी हो या कमजोर । जो साधक आलस्य को त्यागकर योग का अभ्यास करता है । वह योग की सभी क्रियाओं में सिद्धि प्राप्त करता है ।   अभ्यास से ही सिद्धि प्राप्ति

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Hatha Pradipika Ch. 1 [66-69]

मिताहार   सुस्निग्धमधुराहारश्चतुर्थांशविवर्जित: । भुज्यते शिवसंप्रीत्यै मिताहार: स उच्यते ।। 60 ।।   भावार्थ :- पूरी तरह से चिकने अर्थात घी आदि से युक्त व मीठे खाद्य पदार्थों ( आहार ) को, पेट का एक चौथाई ( ¼ ) भाग खाली छोड़कर व आत्मा की प्रसन्नता के लिए ग्रहण किये जाने वाले आहार को मिताहार

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Hatha Pradipika Ch. 1 [60-65]

      पद्मासन द्वारा मुक्ति   पद्मासने स्थितो योगी नाडीद्वारेण पूरितम् । मारुतं धारयेद्यस्तु स मुक्तो नात्र संशय: ।।   भावार्थ :- जो योगी पद्मासन की अवस्था में बैठकर नाड़ी द्वारा अन्दर ली गई प्राणवायु को शरीर के अन्दर ही रोके रखता है अर्थात केवल कुम्भक को करता है । वह बिना किसी सन्देह के अवश्य

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Hatha Pradipika Ch. 1 [51-59]

पद्मासन की विधि  वामोरूपरि दक्षिणं च चरणं संस्थाप्य वामं तथा दक्षोरूपरि, पश्चिमेन विधिना धृत्वा कराभ्यां दृढम् । अङ्गुष्ठौ, हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेत् एतद्व्याधिविनाशकारि यमिनां पद्मासनं प्रोच्यते ।। 46 ।।   भावार्थ :- बायीं जंघा पर दायें पैर को व दायीं जंघा पर बायें पैर को रखें । अब दोनों हाथों को कमर के पीछे से

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Hatha Pradipika Ch. 1 [46-50]

सिद्धासन से बहतर हजार ( 72000 ) नाड़ियों की शुद्धि चतुरशीतिपीठेषु सिद्धमेव सदाभ्यसेत् । द्वासप्ततिसहस्त्राणां नाड़ीनां मलशोधनम् ।। 41 ।।   भावार्थ :- उन चौरासी आसनों में से साधक को सदा सिद्धासन का ही अभ्यास करना चाहिए । इसके अभ्यास से शरीर में स्थित सभी बहतर हजार ( 72000 ) नाड़ियों के मल की शुद्धि

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Hatha Pradipika Ch. 1 [41-45]

सिद्धासन की विधि  योनिस्थानकमन्ध्रिमूलघटितं कृत्वा दृढं विन्यसेत् मेढ्रे पादमथैकमेव हृदये कृत्वा हनुं सुस्थिरम् । स्थाणु: संयमितेन्द्रियोऽचलदृशापश्येद् भ्रुवोरन्तरम् ह्येतन्मोक्षकपाटभेदजनकं सिद्धासनं प्रोच्यते ।। 37 ।।   भावार्थ :- एक पैर की एड़ी को योनिस्थान में ( अण्डकोषों के ठीक नीचे वाले भाग में ) लगाकर दूसरे पैर को शिश्न  के ( लिंग ) ऊपर मजबूती से रखें

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Hatha Pradipika Ch. 1 [37-40]

प्रमुख चार आसन  चतुरशीत्यासनानि शिवेन कथितानि वै । तेभ्यश्चतुष्कमादाय सारभूतं ब्रवीम्यहम् ।। 35 ।।   भावार्थ :- भगवान शिव ने कुल चौरासी ( 84 ) आसनों का वर्णन किया है । यहाँ पर मैं उन सभी आसनों के सार कहे जाने वाले मुख्य चार आसनों का वर्णन कर रहा हूँ ।   विशेष :- यहाँ

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Hatha Pradipika Ch. 1 [35-36]