हठप्रदीपिका का संक्षिप्त परिचय हठप्रदीपिका और हठयोग को एक दूसरे का पर्यायवाची कहा जाये, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । हठयोग की कोई भी चर्चा बिना हठप्रदीपिका के पूर्ण नहीं होती । यौगिक ग्रन्थों में इसका स्थान अतुल्यनीय है । हठयोग के इस अनुपम ग्रन्थ के रचयिता स्वामी स्वात्माराम हैं । हठप्रदीपिका की उपयोगिता का

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Hatha Pradipika – Introduction

          ग्रन्थ का आरम्भ श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै येनोपदिष्टा हठयोगविद्या । विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगमारोढुमिच्छोरधिरोहिणीव ।। 1 ।।   भावार्थ :- हठयोग विद्या का उपदेश करने वाले आदिनाथ ( नाथ सम्प्रदाय के जनक ) को प्रणाम करते हैं । जिन्होंने सभी योग साधनाओं में सबसे श्रेष्ठ अर्थात राजयोग साधना को प्राप्त करने के लिए सीढ़ी के समान

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Hatha Pradipika Ch. 1 [1 – 4]

नाथ योगियों का परिचय श्री आदिनाथमत्स्येन्द्रशाबरानन्दभैरवा: । चौरङ्गीमीनगोरक्षविरुपाक्षविलेशय: ।। 5 ।।   भावार्थ :- श्री आदिनाथ, मत्स्येंद्रनाथ, शाबर, आनंदभैरव, चौरङ्गी, मीन, गोरक्ष, विरुपाक्ष, विलेशय ।   मन्थानो भैरवो योगी सिद्धिबुद्घश्च कन्थडि: । कोरण्टक: सुरानन्द: सिद्धिपादश्च चर्पटि: ।। 6 ।।   भावार्थ :- मन्थान, भैरव योगी, सिद्धि, बुद्ध, कन्थडि, कोरण्टक, सुरानन्द, सिद्धिपाद व चर्पटि ।  

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Hatha Pradipika Ch. 1 [5 – 10]

गुप्त विद्या हठविद्या परं गोप्या योगिनां सिद्धिमिच्छताम् । भवेद्वीर्यवती गुप्ता निर्वीर्या तु प्रकाशिता ।। 11 ।।   भावार्थ :- योग साधना में सिद्धि प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले योगियों के लिए हठयोग विद्या पूरी तरह से गोपनीय ( छुपा कर रखने योग्य ) है । गुप्त रखी हुई हठयोग विद्या ही साधक को बल

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Hatha Pradipika Ch. 1 [11-14]

बाधक तत्त्व अत्याहार: प्रयासश्च प्रजल्पो नियमाग्रह: । जनसङ्गश्च लौल्यं च षड्भिर्योगो विनश्यति ।। 15 ।।   भावार्थ :- योग साधना काल में कुछ ऐसे अवगुण या कुछ बुरी आदतें ऐसी होती हैं जो साधक को योगमार्ग में आगे बढ़ने से रोकती हैं । ऐसे अवगुणों या बुरी आदतों को योग में बाधक तत्त्व कहते हैं

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Hatha Pradipika Ch. 1 [15-16]

दस यम   अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं क्षमा धृति: । दयार्जवं मिताहार: शौचं चैव यमा: दश ।।   भावार्थ :- इस श्लोक में यम के दस भेदों  ( प्रकार ) का वर्णन किया गया है । जो इस प्रकार हैं :- 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अस्तेय, 4. ब्रह्मचर्य, 5. क्षमा, 6. धृति, 7. दया, 8.

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Hatha Pradipika Ch. 1 [17-18]

आसन वर्णन  हठस्य प्रथमाङ्गत्वादासनं पूर्वमुच्यते । कुर्यात्तदासनं स्थैर्यमारोग्यं चाङ्गलाघवम् ।। 19 ।।   भावार्थ :- स्वामी स्वात्माराम आसन को हठयोग के पहले अंग के रूप में मानते हैं । इसलिए सबसे पहले उसी का वर्णन करते हैं । आसन के वर्णन के साथ ही उससे मिलने वाले लाभ के बारे में बताते हुए कहते हैं

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Hatha Pradipika Ch. 1 [19-20]