सातवां अध्याय ( समाधि योग ) घेरण्ड संहिता का यह अन्तिम अध्याय है । जिसमें महर्षि घेरण्ड ने अपने सप्तांग योग के अन्तिम अंग अर्थात् समाधि योग का वर्णन किया है । घेरण्ड संहिता के प्रत्येक अध्याय में योग के एक अंग का वर्णन किया गया है । जिसके अनुसार सात अध्यायों के माध्यम से

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Gheranda Samhita Ch. 7 [1-2]

घटाद्भिन्नं मन: कृत्वा ऐक्यं कुर्यात् परात्मनि । समाधिं तं विजानीयान्मुक्तसंज्ञो दशादिभि: ।। 3 ।। अहं ब्रह्म न चान्योऽस्मि ब्रह्मैवाहं न शोकभाक् । सच्चिदानंदरूपोऽहं नित्यमुक्त: स्वभाववान् ।। 4 ।।   भावार्थ :- जब साधक अपने मन को शरीर से अलग समझकर उसका ( मन का )  परमात्मा के साथ एकीकरण कर देता है । तब वह

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Gheranda Samhita Ch. 7 [3-4]

समाधि के छ: ( 6 ) प्रकार   शाम्भव्या चैव भ्रामर्या खेचर्या योनिमुद्रया । ध्यानं नादं रसानन्दं  लयसिद्धिश्चुतुर्विधा ।। 5 ।। पञ्चधा भक्तियोगेन मनोमूर्च्छा च षड्विधा । षड्विधोऽयं राजयोग: प्रत्येकमवधारयेत् ।। 6 ।।   भावार्थ :-  शाम्भवी, भ्रामरी, खेचरी व योनिमुद्राओं से क्रमशः ध्यान योग समाधि, नादयोग समाधि, रसानन्द समाधि व लयसिद्धि योग नामक चार

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Gheranda Samhita Ch. 7 [5-6]

ध्यान योग समाधि वर्णन   शाम्भवीं मुद्रिकां कृत्वा आत्मप्रत्यक्षमानयेत् । बिन्दुब्रह्ममयं दृष्ट्वा मनस्तत्र नियोजयेत् ।। 7 ।। खमध्ये कुरु चात्मानं आत्ममध्ये च खं कुरु । आत्मानं खमयं दृष्ट्वा न किञ्चिदपि बाधते । सदानन्दमयो भूत्वा समाधिस्थो भवेन्नर: ।। 8 ।।   भावार्थ :-  शाम्भवी मुद्रा का अभ्यास करते हुए साधक को अपनी आत्मा का साक्षात्कार करना

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Gheranda Samhita Ch. 7 [7-8]

नादयोग समाधि वर्णन   अनिलं मन्दवेगेन भ्रामरीकुम्भकं चरेत् । मन्दं मन्दं रेचयेद्वायुं भृङ्गनादं ततो भवेत् ।। 9 ।। अन्त:स्थं भ्रामरीनादं श्रुत्वा तत्र मनो नयेत् । समाधिर्जायते तत्र आनन्द: सोऽहमित्यत: ।। 10 ।।   भावार्थ :-  वायु को धीमी गति के साथ शरीर के अन्दर भरकर भ्रामरी कुम्भक करे । इसके बाद उस वायु को धीरे-

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Gheranda Samhita Ch. 7 [9-10]

रसानन्दयोग समाधि वर्णन   साधनात् खेचरीमुद्रा रसनोर्ध्वंगता यदा । तदा समाधिसिद्धि: स्याद्धित्वा साधारणक्रियाम् ।। 11 ।।   भावार्थ :-  खेचरी मुद्रा की साधना ( अभ्यास ) करने पर साधक की जीभ ऊपर की ओर चली जाती है । जिसके परिणामस्वरूप साधक बिना किसी अन्य सामान्य क्रियाओं के ही समाधि को सिद्ध कर लेता है ।

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Gheranda Samhita Ch. 7 [11-13]

भक्तियोग समाधि   स्वकीयहृदये ध्यायेदिष्टदेव स्वरूपकम् । चिन्तयेद् भक्तियोगेन परमाह्लादपूर्वकम् ।। 14 ।। आनन्दाश्रुपुलकेन दशाभाव: प्रजायते । समाधि: सम्भवेत्तेन सम्भवेच्च मनोन्मनी ।। 15 ।।    भावार्थ :-  अपने हृदय प्रदेश में अपने इष्टदेव का ध्यान करें और परमानन्द के साथ भक्तियोग का चिन्तन करना चाहिए । जब साधक का हृदय परमानन्द के अश्रुओं से उदित

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Gheranda Samhita Ch. 7 [14-15]