तत्त्वं लयामृतं गोप्यं शिवोक्तं विविधानि च । तेषां संक्षेपमादाय कथितं मुक्तिलक्षणम् ।। 22 ।।   भावार्थ :-  इस समाधि रूपी गुप्त अमृत तत्त्व जिसकी विधि स्वयं भगवान शिव के द्वारा बताई गई है । मैंने उस समाधि के सभी लक्षणों को संक्षिप्त रूप में बता दिया है ।     इति ते कथितश्चण्ड! समाधिर्दुर्लभ: पर:

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Gheranda Samhita Ch. 7 [22-23]

आत्मा घटस्थचैतन्यमद्वैतं शाश्वतं परम् । घटादिभिन्नतो ज्ञात्वा वीतरागं विवासनम् ।। 20 ।।   भावार्थ :-  इस शरीर में स्थित आत्मा ( चैतन्य ) ही परम शाश्वत अर्थात् सत्य और अद्वैत ( एक ही भाव से युक्त ) है । इसे ( आत्मा को ) शरीर से अलग जानने से ही साधक राग व वासना से

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Gheranda Samhita Ch. 7 [20-21]

विष्णु की सर्वत्र विद्यमानता   जले विष्णु: स्थले विष्णुर्विष्णु: पर्वतमस्तके । ज्वालामालाकुले विष्णु: सर्वं विष्णुमयं जगत् ।। 18 ।।   भावार्थ :-  जल में विष्णु, स्थल ( भूमि ) में विष्णु, पर्वत के मस्तक अर्थात् चोटी पर विष्णु, ज्वालासमूह अर्थात् अग्नि में विष्णु का निवास है । यह पूरा जगत अर्थात् संसार विष्णु से युक्त

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Gheranda Samhita Ch. 7 [18-19]

राजयोग समाधि वर्णन   मनोमूर्च्छां समासाद्य मन आत्मनि योजयेत् । परमात्मन: समायोगात् समाधिं समवाप्नुयात् ।। 16 ।।   भावार्थ :-  साधक मनोमूर्च्छा की साधना करके अपने मन को आत्मा में केन्द्रित करे । इस प्रकार मन का परमात्मा से संयोग ( मिलन ) होने पर साधक को समाधि की प्राप्ति हो जाती है । यह

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Gheranda Samhita Ch. 7 [16-17]

भक्तियोग समाधि   स्वकीयहृदये ध्यायेदिष्टदेव स्वरूपकम् । चिन्तयेद् भक्तियोगेन परमाह्लादपूर्वकम् ।। 14 ।। आनन्दाश्रुपुलकेन दशाभाव: प्रजायते । समाधि: सम्भवेत्तेन सम्भवेच्च मनोन्मनी ।। 15 ।।    भावार्थ :-  अपने हृदय प्रदेश में अपने इष्टदेव का ध्यान करें और परमानन्द के साथ भक्तियोग का चिन्तन करना चाहिए । जब साधक का हृदय परमानन्द के अश्रुओं से उदित

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Gheranda Samhita Ch. 7 [14-15]

रसानन्दयोग समाधि वर्णन   साधनात् खेचरीमुद्रा रसनोर्ध्वंगता यदा । तदा समाधिसिद्धि: स्याद्धित्वा साधारणक्रियाम् ।। 11 ।।   भावार्थ :-  खेचरी मुद्रा की साधना ( अभ्यास ) करने पर साधक की जीभ ऊपर की ओर चली जाती है । जिसके परिणामस्वरूप साधक बिना किसी अन्य सामान्य क्रियाओं के ही समाधि को सिद्ध कर लेता है ।

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Gheranda Samhita Ch. 7 [11-13]

नादयोग समाधि वर्णन   अनिलं मन्दवेगेन भ्रामरीकुम्भकं चरेत् । मन्दं मन्दं रेचयेद्वायुं भृङ्गनादं ततो भवेत् ।। 9 ।। अन्त:स्थं भ्रामरीनादं श्रुत्वा तत्र मनो नयेत् । समाधिर्जायते तत्र आनन्द: सोऽहमित्यत: ।। 10 ।।   भावार्थ :-  वायु को धीमी गति के साथ शरीर के अन्दर भरकर भ्रामरी कुम्भक करे । इसके बाद उस वायु को धीरे-

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Gheranda Samhita Ch. 7 [9-10]