सभी मुद्राओं का फल   इदं तु मुद्रापटलं कथितं चण्ड ते शुभम् । वल्लभं सर्वसिद्धानां जरामरणनाशनम् ।। 94 ।।   भावार्थ :-  महर्षि घेरण्ड राजा चण्डकापालिक को कहते हैं कि मैंने मुद्राओं के विषय में वर्णन करने वाले अध्याय का वर्णन तुम्हारे सामने किया है । यह सभी मुद्राएँ सभी विद्वानों अथवा सिद्ध पुरुषों को

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Gheranda Samhita Ch. 3 [94-100]

मातङ्गिनी मुद्रा विधि व फल वर्णन   कण्ठमग्ने जले स्थित्वा नासाभ्यां जलमाहरेत् । मुखान्निर्गमयेत् पश्चात् पुनर्वक्त्रेण चाहरेत् ।। 88 ।। नासाभ्यां रेचयेत् पश्चात् कुर्यादेवं पुनः पुनः । मातङ्गिनी परा मुद्रा जरामृत्युविनाशिनी ।। 89 ।। विरले निर्जने देशे स्थित्वा चैकाग्रमानस: । कुर्यान्मातङ्गिनीं मुद्रां मातङ्ग इव जायते ।। 90 ।। यत्र यत्र स्थितोयोगी सुख मत्यन्तमश्नुते । तस्मात्

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Gheranda Samhita Ch. 3 [88-93]

अश्वनी मुद्रा विधि व फल वर्णन   आकुञ्चयेद् गुदाद्वारं प्रकाशयेत् पुनः पुनः । सा भवेदश्विनी मुद्रा शक्तिप्रबोधकारिणी ।। 82 ।। अश्वनी परमा मुद्रा गुह्यरोगविनाशिनी । बलपुष्टिकरी चैव अकालमरणं हरेत् ।। 83 ।।   भावार्थ :-  गुदाद्वार अथवा गुदा को बार- बार सिकोड़ना ( अन्दर खींचना ) व फैलाना ( बाहर की ओर धकेलना ) अश्वनी

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Gheranda Samhita Ch. 3 [82-87]

आकाशीय धारणा मुद्रा विधि वर्णन   यत् सिन्धौ वरशुद्धवारिसदृशं व्योमं परं भासितं तत्त्वं देवसदाशिवेन सहितं बीजं हकारान्वितम् । प्राणां विनीय पञ्चघटिकांश्चित्तान्वितां धारयेत् ऐषा मोक्षकपाटभेदनकरी कुर्यान्नभोधारणा ।। 80 ।।   भावार्थ :-  इस आकाशीय धारणा मुद्रा का वर्ण अर्थात् रंग सिन्धु नदी के जल जैसा होता है । यह आकाश तत्त्व का प्रतिनिधित्व करती है ।

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Gheranda Samhita Ch. 3 [80-81]

वायवीय धारणा मुद्रा विधि वर्णन   यद्भिन्नाञ्जनपुञ्जसन्निभमिदं धूम्रावभासं परं तत्त्वं सत्त्वमयं यकार सहितं यत्रेश्वरो देवता । प्राणां विनीय पञ्चघटिकांश्चित्तान्वितां धारयेत् ऐषा खे गमनं करोति यमिनां स्याद्वायवी धारणा ।। 77 ।।   भावार्थ :-  इस मुद्रा का वर्ण अन्य से थोड़ा अलग अर्थात् काजल के चूर्ण की तरह अर्थात् धुएँ के रंग जैसा होता है ।

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Gheranda Samhita Ch. 3 [77-79]

आम्भसी धारणा मुद्रा विधि वर्णन   शङ्खेन्दुप्रतिमञ्च कुन्दधवलं तत्त्वं किलालं शुभम् तत्पीयूषवकारबीजसहितं युक्तं सदा विष्णुना । प्राणांस्तत्र विनीय पञ्चघटिकांश्चित्तान्वितां धारयेत् ऐषादु: सहतापपापहरिणी स्यादाम्भसी धारणा ।। 72 ।।   भावार्थ :-  इसका वर्ण शंख है जो चन्द्रमा की भाँति सुन्दर है, इसका रंग कुन्द के फूल की तरह ही सफेद है जिसमें अमृत का निवास है

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Gheranda Samhita Ch. 3 [72-76]

पञ्चधारणा मुद्रा वर्णन   कथिता शाम्भवी मुद्रा श्रृणुष्व पञ्चधारणाम् । धारणानि समासाद्य किं न सिद्धयति भूतले ।। 68 ।। अनेन नरदेहेन स्वर्गेषु गमनागमम् । मनोगतिर्भवेत्तस्य खेचरत्वं न चान्यथा ।। 69 ।।   भावार्थ :-  इस प्रकार पिछले श्लोक में शाम्भवी मुद्रा का वर्णन किया गया है । अब पञ्च धारणा मुद्रा के वर्णन को सुनो

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Gheranda Samhita Ch. 3 [68-71]