द्वितीय अध्याय ( आसन वर्णन ) घेरण्ड संहिता के दूसरे अध्याय में सप्तांग योग के दूसरे अंग अर्थात् आसन का वर्णन किया गया है । घेरण्ड ऋषि ने आसनों के बत्तीस ( 32 ) प्रकारों को माना है । घेरण्ड संहिता के अनुसार आसन करने से साधक के शरीर में दृढ़ता ( मजबूती ) आती

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [1-6]

सिद्धासन वर्णन   योनिस्थानकमङ्घ्रिमूलघटितं संपीड्य गुल्फेतरम् मेढ्रे सम्प्रणिधाय तं तु चिबुकं कृत्वा हृदि स्थापितम् । स्थाणु: संयमितेन्द्रियोऽचलदृशा पश्यन् भ्रुवोरन्तरमेवंमोक्षविधायतेफलकरं सिद्धासनं प्रोच्यते ।। 7 ।।   भावार्थ :- एक पैर की एड़ी ( विशेषतः बायें पैर की ) से योनिस्थान ( अंडकोशों के नीचे ) को दबायें । दूसरे पैर की एड़ी को लिङ्गमूल ( स्वाधिष्ठान

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [7-10]

मुक्तासन वर्णन   पायुमूले वामगुल्फं दक्षगुल्फं तथोपरि । समकायशिरोग्रीवं मुक्तासनन्तु सिद्धि दम् ।। 11 ।।   भावार्थ :- पैर की बायीं ऐड़ी को गुदाद्वार में लगाकर उसके ऊपर दायें पैर की एड़ी को रखें । सिर व गर्दन को बिना हिलायें बिलकुल सीधी करके बैठना मुक्तासन कहलाता है । यह मुक्तासन साधक को अनेक प्रकार

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [11-16]

वीरासन वर्णन   एकपादमथैकस्मिन्विन्यसेदूरूसंस्थितम् । इतरस्मिंस्तथा पश्चाद्वीरासनमितीरितम् ।। 17 ।।   भावार्थ :-  एक पैर के पँजे को उल्टा करके दूसरे पैर की जँघा पर रखें ( जिस पैर के पँजे को जँघा पर रखा है उसके घुटने को जमीन पर टिकाकर रखना चाहिए ) । फिर उस दूसरे पैर को पीछे की ओर रखें

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [17-22]

मत्स्येंद्रासन वर्णन   उदरं पश्चिमाभासं कृत्वा तिष्ठति यत्नतः । नम्राङ्गं  वामपादं हि दक्षजानूपरि न्यसेत् ।। 23 ।। तत्र याम्यं कूपरञ्च याम्यं करे च वक्त्रकम् । भ्रुवोर्मध्ये गतां दृष्टिं पीठं मात्स्येन्द्रमुच्यते ।। 24 ।।   भावार्थ :-  अपने पेट को पीछे पीठ ( कमर ) की ओर ले जाने का प्रयास करें और बायें पैर को

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [23-28]

मयूरासन वर्णन   धरामवष्टभ्य करयोस्तलाभ्यां तत्कूर्परे स्थापितनाभिपार्श्वम् । उच्चासनो दण्डवदुत्थित: खे मायूरमेतत्प्रवदन्ति पीठम् ।। 29 ।।   भावार्थ :-  दोनों हाथों की हथेलियों को जमीन पर मजबूती के साथ रखते हुए दोनों कोहनियों को नाभि प्रदेश के दोनों तरफ ( दायीं व बायीं ओर ) रखकर पूरे शरीर को दोनों कोहनियों पर डण्डे के समान

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [29-35]

गरुड़ासन वर्णन   जंघोंरुभ्यां धरां पीड्य स्थिरकायो द्विजानुनी । जानूपरि करयुग्मं गरुड़ासनमुच्यते ।। 36 ।।   भावार्थ :-  दोनों जाँघों व घुटनों से भूमि को दबाते हुए दोनों हाथों घुटनों के ऊपर हाथों को टिकाकर रखना गरुड़ासन कहलाता है ।     विशेष :- गरुड़ासन में गरुड़ शब्द का अर्थ गरुड़ नामक पक्षी होता है

Read More
Gheranda Samhita Ch. 2 [36-44]