गरुड़ासन वर्णन जंघोंरुभ्यां धरां पीड्य स्थिरकायो द्विजानुनी । जानूपरि करयुग्मं गरुड़ासनमुच्यते ।। 36 ।। भावार्थ :- दोनों जाँघों व घुटनों से भूमि को दबाते हुए दोनों हाथों घुटनों के ऊपर हाथों को टिकाकर रखना गरुड़ासन कहलाता है । विशेष :- गरुड़ासन में गरुड़ शब्द का अर्थ गरुड़ नामक पक्षी होता है …
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- Category: gheranda samhita 2