अथ प्रथमोपदेश: ( पहला अध्याय )   अथ षट्कर्म साधना प्रकरणम् ( अब षट्कर्म योग साधना का वर्णन किया जाता है )   घेरण्ड संहिता के इस पहले अध्याय में केवल षट्कर्मों का ही वर्णन किया गया है । महर्षि घेरण्ड ने षट्कर्म को योग के पहले अंग के रूप में माना है । इनका

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Gheranda Samhita Ch. 1 [1-7]

आमकुम्भमिवाम्भस्थो जीर्यमाण: सदा घट: । योगानलेन सन्दह्य घटशुद्धिं समाचरेत् ।। 8 ।।   भावार्थ :- जिस प्रकार कच्चे घड़े में पानी डालने से वह निरन्तर गलना शुरू हो जाता है । उसी कच्चे घड़े के समान मनुष्य का शरीर की प्रतिक्षण कमजोर होता रहता है । उस शरीर रूपी घड़े को योग रूपी अग्नि में

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Gheranda Samhita Ch. 1 [8-11]

षट्कर्म वर्णन   धौतिर्वस्तिस्तथा नेतिर्लौलिकी त्राटकं तथा । कपालभातिश्चैतानि षट्कर्माणि समाचरेत् ।। 12 ।।   भावार्थ :- योग साधक को धौति, बस्ति, नेति, लौलिकी ( नौलि ), त्राटक व कपालभाति नामक इन छ: प्रकार की शुद्धि क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए ।   विशेष:- महर्षि घेरण्ड ने षट्कर्मों को योग के पहले अंग के रूप

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Gheranada Samhita Ch. 1 [12-18]

वह्निसार / अग्निसार धौति विधि   नाभिग्रन्थिं मेरुपृष्ठे शतवारञ्च कारयेत् । अग्निसार इयं धौतिर्योगिनां योगसिद्धिदा ।। 19 ।।   भावार्थ :- वह्निसार अपनी नाभि ( पेट के बीच में स्थित खड्डानुमा स्थान ) को मेरुदण्ड ( कमर ) के साथ सौ बार लगाने ( पेट को सौ बार आगे- पीछे करना ) को अग्निसार (

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Gheranda Samhita Ch. 1 [19-22]

प्रक्षालन विधि   नाभिमग्ने जले स्थित्वा नाडीशक्तिं विसर्जयेत् । कराभ्यां क्षा लयेन्नाडीं यावन्मलविसर्जनम् ।। 23 ।।   भावार्थ :- नाभि तक के गहरे पानी में उत्कटासन में बैठकर अपनी शक्तिनाड़ी ( मलद्वार ) को बाहर की ओर निकालकर दोनों हाथों से उसको अच्छी तरह से तब तक साफ करना चाहिए जब तक कि उसके अन्दर

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Gheranda Samhita Ch. 1 [23-28]

जिह्वामूल धौति लाभ    अथात: सम्प्रवक्ष्यामि जिह्वाशोधनकारणम् । जरामरणरोगादीन् नाशयेद्दीर्घलम्बिका ।। 29 ।।   भावार्थ :- इसके बाद मैं जिह्वा ( जीभ ) को लम्बी करने वाली, बुढ़ापा, मृत्यु, सभी रोगों को नष्ट करने वाली व जिह्वा को शुद्ध करने वाले कारण अर्थात् विधि का वर्णन करूँगा ।     विशेष :- इस श्लोक में

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Gheranda Samhita Ch. 1 [29-35]

हृदय धौति के प्रकार   हृद्धौतिं त्रिविधां कुर्याद्दण्डवमनवाससा ।। 36 ।।   भावार्थ :- हृदय धौति को तीन प्रकार से किया जाता है :- 1. दण्ड ( दण्डधौति ), 2. वमन ( वमन धौति ), 3. वास ( वस्त्र धौति ) ।     दण्ड धौति विधि   रम्भादण्डं हरिद्दन्डं वेत्रदण्डं तथैव च । हृन्मध्ये

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Gheranda Samhita Ch. 1 [36-42]