कपालभाति क्रिया के प्रकार   भालभाति का व्यवहारिक नाम कपालभाति है । सभी व्यक्ति इसे कपालभाति के नाम से ही जानते हैं । लेकिन महर्षि घेरण्ड ने इसे भालभाति कहकर संबोधित किया है । भाल का अर्थ है ‘ललाट या चेहरा’ । और कपाल का अर्थ भी ललाट या चेहरा ही होता है । इसलिए

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Gheranda Samhita Ch. 1 [56-61]

लौलिकी / नौलि क्रिया विधि व लाभ   लौलिकी शब्द लोल शब्द से बना है । जिसका अर्थ है पेट को घुमाना । लौलिकी को नौलि क्रिया भी कहा जाता है । यह षट्कर्म का चौथा अंग है । इससे हमारे पांचन तन्त्र की शुद्धि होती है । यह हमारे पांचन संस्थान के सभी आन्तरिक

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Gheranda Samhita Ch. 1 [53-55]

नेति क्रिया   यह षट्कर्म का तीसरा अंग है । नेति क्रिया द्वारा हमारे शीर्ष प्रदेश ( शरीर का ऊपरी भाग ) की शुद्धि होती है । जिसमें हमारी आँखों, नाक, कान व गले की शुद्धि होती है । यहाँ पर भी हठ प्रदीपिका की तरह ही नेति के एक ही प्रकार का वर्णन किया

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Gheranda Samhita Ch. 1 [51-52]

बस्ति क्रिया के प्रकार   बस्ति क्रिया को षट्कर्म का दूसरा अंग माना है । इस क्रिया में हम अपने गुदा प्रदेश द्वारा अपनी बड़ी आँत की शुद्धि करते हैं । बस्ति से ठीक पहले धौति क्रिया के अन्तिम अंग के रूप में मूलशोधन क्रिया के द्वारा भी हम अपनी गुदा की सफाई करते हैं

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Gheranda Samhita Ch. 1 [46-50]

मूलशोधन धौति   अपानक्रूरता तावद्या वन्मूलं न शोधयेत् । तस्मात् सर्वप्रयत्नेन मूलशोधनमाचरेत् ।। 43 ।।   भावार्थ :- जब तक शरीर के मूल भाग की शुद्धि नहीं होती तब तक शरीर में अपान वायु ( अपान नामक प्राण जो गुदा प्रदेश में स्थित होता है ) का प्रकोप ( असन्तुलन ) बना रहता है ।

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Gheranda Samhita Ch. 1 [43-45]

हृदय धौति के प्रकार   हृद्धौतिं त्रिविधां कुर्याद्दण्डवमनवाससा ।। 36 ।।   भावार्थ :- हृदय धौति को तीन प्रकार से किया जाता है :- 1. दण्ड ( दण्डधौति ), 2. वमन ( वमन धौति ), 3. वास ( वस्त्र धौति ) ।     दण्ड धौति विधि   रम्भादण्डं हरिद्दन्डं वेत्रदण्डं तथैव च । हृन्मध्ये

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Gheranda Samhita Ch. 1 [36-42]

जिह्वामूल धौति लाभ    अथात: सम्प्रवक्ष्यामि जिह्वाशोधनकारणम् । जरामरणरोगादीन् नाशयेद्दीर्घलम्बिका ।। 29 ।।   भावार्थ :- इसके बाद मैं जिह्वा ( जीभ ) को लम्बी करने वाली, बुढ़ापा, मृत्यु, सभी रोगों को नष्ट करने वाली व जिह्वा को शुद्ध करने वाले कारण अर्थात् विधि का वर्णन करूँगा ।     विशेष :- इस श्लोक में

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Gheranda Samhita Ch. 1 [29-35]