अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।। 18 ।।

 

 

विशेष :-  जब ब्रह्मा का दिन प्रारम्भ होता है, तब यह सभी व्यक्त ( दिखाई देने वाले ) पदार्थ उस अव्यक्त ( प्रकृति ) से ही उत्पन्न होते हैं और रात्रि के समय पहले की भाँति सभी व्यक्त पदार्थ जो अव्यक्त से उत्पन्न हुए थे, वह वापिस उसी अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं ।

 

 

विशेष :-  ब्रह्मा के दिन का तात्पर्य ब्रह्मा के जागने के समय से और रात्रि का ब्रह्मा के सोने के समय से है । ब्रह्मा के दिन को कल्प कहते हैं । यह परीक्षा में उपयोगी हो सकता है ।

 

 

 

भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते ।
रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे ।। 19 ।।

 

 

व्याख्या :-  हे पार्थ ! प्राणियों का पूरा समुदाय कर्म बन्धन से बन्धकर बार- बार ब्रह्मा के दिन जन्म लेता है और ब्रह्मा की रात्रि के समय उसी में विलीन हो जाता है ।

 

 

परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः ।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ।। 20 ।।

 

 

व्याख्या :-  परन्तु उस अव्यक्त ( मूल प्रकृति ) से भी उत्कृष्ट अथवा ऊँची सनातन परब्रह्मा की स्थिति है, जो सभी प्राणियों के समूहों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होती है अर्थात् जिसका कभी अन्त नहीं होता ।

 

 

 

 

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्‌ ।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ।। 21 ।।

 

 

व्याख्या :-  अव्यक्त, अक्षर और परमगति आदि जो शब्द हैं, वह सभी परब्रह्म परमात्मा के लिए ही कहे गए हैं ।  जिनको ( अव्यक्त, अक्षर व परमगति ) प्राप्त करने के बाद मनुष्य का पुनर्जन्म नहीं होता है अर्थात् वह दोबारा जन्म नहीं लेता है, वही मेरा परमधाम अथवा स्थान है ।

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  1. ओम् गुरुदेव!
    आपका हृदय से परम आभार प्रेषित करता हूं।

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