आसुरी प्रवृत्ति से युक्त मनुष्यों के लक्षण

 

प्रवृत्तिं च निवृत्तिं च जना न विदुरासुराः ।

न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते ।। 7 ।।

 

 

 

व्याख्या :-  जो आसुरी सम्पदा वाले व्यक्ति होते हैं, वह प्रवृत्ति और निवृत्ति के विषय में नहीं जानते अर्थात् उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ? वे इसके विषय में कुछ नहीं जानते । उनके अन्दर न शुद्धि है, न सदाचार है और न ही सत्य है अर्थात् उनमें न ही तो शुद्धि का भाव होता है, न ही सदाचार का भाव होता है और न ही उनमें सत्य का आचरण होता है ।

 

 

 

आसुरी प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों का कथन

 

 

असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्‌ ।

अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्‌ ।। 8 ।।

 

 

व्याख्या :-   आसुरी प्रवृत्ति से युक्त लोग कहते हैं कि यह सारा संसार असत्य ( झूठा ) है, आश्रय रहित, और बिना ईश्वर के, केवल स्त्री और पुरुष के आपसी संयोग द्वारा उत्पन्न हुआ है । इसलिए काम वासना अथवा काम भावना के अतिरिक्त इस संसार का क्या उद्देश्य हो सकता है ? कुछ नहीं ।

 

  

एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः ।

प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः ।। 9 ।।

 

 

व्याख्या :- इस प्रकार की भावना रखने वाले मन्द बुद्धि लोगों का आत्मज्ञान नष्ट हो चुका होता है । ये लोग दूसरों का अहित अर्थात् बुरा करने तथा संसार को नष्ट करने के लिए ही जन्म लेते हैं ।

 

 

 

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः ।

मोहाद्‍गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः ।। 10 ।।

 

 

व्याख्या :-  यह आसुरी प्रवृत्ति से युक्त लोग दम्भ, मान और मद में चूर होकर कभी भी पूर्ण न होने वाली कामवासनाओं का सहारा लेकर, ज्ञान के अभाव से झूठे सिद्धान्तों को ग्रहण करके, अशुद्ध विचारों को धारण करके संसार में विचरण करते हैं ।

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